मन...!!!
ऐ मन तू इतना क्यूँ है बावला,
मेरे इतना समझाने पर भी तू क्यूँ न संभला।
जब मालूम था की इस रस्ते पे खानी ही है ठोकर,
तो फिर बुलाने पर भी तू क्यूँ ना आया वापस मुड़कर।
हमेशा तेरा कहा माना था मैंने,
और आज उस विश्वास के जवाब में धोखा दे दिया तूने।
ज़िन्दगी के हर पल को आज़ाद पंछी सा जीने दिया तुझे मैंने,
आज उस आजादी का नाजायज़ फायेदा ही उठा लिया तूने।
कितनी बार समझाने की कोशिश की थी मैंने तुझे,
हर बार नज़र-अंदाज़ कर आगे बढ़ गया था तू मुझे।
क्या समझाने में कोई कमी रह गई थी मेरे,
जो ठोकार खाकर भी कदम संभल न पाए तेरे।
----------------------------------------------
PS: कब समझेगा तू मेरे आवारा चंचल मन।
कैसे मेरे वश में आएगा तू मेरे आवारा चंचल मन।
cya...
स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।
ReplyDeleteकल 16/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
मन की बातें मन ही जाने,मन कब किसी की सुनता है...
ReplyDeleteसुंदर रचना...
मन की बातें मन ही जाने,मन कब किसी की सुनता है...
ReplyDeleteसुंदर रचना...
मन की बातें मन ही जाने
ReplyDeleteसुंदर रचना !